आजा बहार आजा 
गुंजन भवरों सा 
उड़ना तितली सा 
हर फूल उसे प्यारा 
आजा बहार आजा
तेज हवा का झोंका 
बाधित उड़ान करता 
चोटिल पंख होते 
पर रुकने का
 नाम न लेते
नव कलिकाएं
 मनमोहक  सुगंध 
आकृष्ट  इतना  करती 
हिलमिल कर उनमें 
खुद का अस्तित्व
नजर न आता 
 होता  तब ठहराव नहीं
नीलाम्बर   छू  
खो जाना चाहता 
आजा बहार आजा 
तुझमें रम  जाना चाहता  
आशा
 
 
 
 
 
 
          
      
 
  
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
Your reply here: