Akanksha -asha.blog spot.com
17 फ़रवरी, 2015
है व्यर्थ सब सोचना
प्रेम रंग में रंगी
कल्पना में खोई
है सत्य क्या भूल गई
भ्रमित हुई
बहुत जोर से ठोकर खाई
तब भी न समझी
गर्त में गिरती गई
अश्रुपूरित नेत्र लिए
अवसाद में डूबी
अपना आपा खो बैठी
खुद को ही भूल गई
यह तक न समझ पाई
वह प्रेम था या वासना
अब व्यर्थ है ये सब सोचना !
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