शाम का धुंधलका 
रात्रि की प्रतीक्षा 
मुझे ले चली 
खुले मैदान में |
रात्रि में सितारे 
झिलमिलाए टिमटिमाये 
यहाँ से वहां जाएं 
ले चले अपने साथ में |
विचारों ने उड़ान भरी 
माँ ने एक बार बताया था 
हर तारा किसी न किसी का
घर होता है  |
मैंने सोचा क्यूं न मैं 
अपना घर खोजूं 
उस जहां में 
सितारों के सान्निध्य में |
जैसे ही कदम बढाए 
दृश्य विहंगम  नजर आया 
एक समूह   तारों का 
दरिया सा नजर आया |
याद आई आकाश गंगा 
किताब में कभी पढ़ा था 
 समेटे है अनगिनत तारे
अपने में |
अपने में |
ज़रा भी भ्रम नहीं हुआ देख कर 
यही है शुक्र तारा प्यार का सितारा 
किसी ने नाम दिया  भोर का तारा
चमक तीव्र इसकी पहचान हुई |
पर एक तारा नन्हां सा 
चाँद के पास 
इतना मन भाया सोचा 
कल यही मेरा घर होगा |
कल यही मेरा घर होगा |
आशा  
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