आओ छिपालूँ तुम्हें 
अपने आगोश में 
बांध लूं केशपाश में 
घनी कुंतल छाँव में |
बंधन मुक्त ना हो पाओगे 
प्यार की फुहार में 
भीग भीग जाओगे 
जाना न चाहोगे |
मदहोशी बढ़ती जाएगी 
बंधन में बंध कर 
खिचे चले आओगे 
मुक्त न होना चाहोगे |
इसकी ही तलाश थी अब तक 
समय हाथ से फिसला 
जितना तुम्हें बांधना चाहा 
बढ़ता गया फासला  |
हूँ आज तक आतुर 
साथ तुम्हारा पाने को 
अब दूर ना जाना मुझसे 
बंधन है कच्चा धागा नहीं |
है यह प्रीत पुरानी 
अब तुम्हें सोचना है 
इससे मुक्त  न हो  पाओगे 
यह तुमसे वादा है मेरा |
 आशा 
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
Your reply here: