एक दिन और बीता 
कुछ भी नया  नहीं हुआ 
वही सुबह वही शाम 
उबाऊ जीवन हो गया 
फीकापन पसरा हुआ 
सारा उत्साह खो  गया 
समस्त रंग फीके हुए 
किसी का रंग नहीं चढ़ा 
रस्म अदाई रह गई 
मन का कुछ भी नहीं हुआ 
ना ही दाल का छोंक 
ना स्वाद किसी सब्जी में 
ना ही रस का  समावेश 
इस छोटी सी जिन्दगी में
बेरंग  बेमतलब का बोझ 
उठाए घूम रहा दिल में 
प्रसन्नता से कोसों दूर  
भागती दौड़ती जीवन शैली 
है एक ही अहसास 
कि साँस चलती  रही 
थमने की जुर्रत न की  
शक्तिहीन दुर्बल शरीर  
मन भी भटकने  लगा 
क्षार क्षार  जीवन हुआ 
रह गया इन्तजार रात का
चूंकि अन्धकार से भय न हुआ |आशा
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