कहानी होकर रह गई 
              
बैठी उदास 
गुमसुम गुमसुम 
बहाती नीर 
नयनों से छमछम 
  संयम न रख पाती
  खुद पर 
 वेदना अंतस की 
 किसे बताए 
 कोई प्यार नहीं करता 
 उसे स्वीकार नहीं करता 
 जीने की चाह 
 हुई कमतर 
 वह झुकी
 रेलिंग पर इतनी 
 सम्हल न सकी 
 नीचे गिरी 
 साँसें  पलायन कर गईं 
 और जीवन लीला 
 इस लोक  की 
 समाप्त हो गई 
 वह कहानी
  हो कर रह गई 
 आशा 
 
 
 
 
 
          
      
 
  
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
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