पहले भटके दर दर 
सुख चैन की तलाश में 
थी अनगिनत बाधाएं 
उन पलों की आस में 
पर एक मार्ग खोज लिया 
था कठिन  फिर भी 
सुकून से भरते गए 
जब आए उसकी शरण
विश्वास का संबल लिए
विश्वास का संबल लिए
प्रेम का एक बीज लगाया 
जल से सिंचित उसे  किया 
जब नन्हां सा अंकुर फूटा 
फल पाने को बेचैन हुआ 
यही अस्थिरता मन की  
मार्ग से भटकाने लगी 
सुख  तिरोहित हो गया 
बेचैनी का सामना हुआ 
पर फल की आशा में 
चंचल मन वही अटका  
जब तक फल ना मिला 
उसका डेरा वहीं रहा
कुछ सुख का अनुभव हुआ 
 स्थिरता आई मन में
बचैनी से किनारा किया  
उसकी तलाश पूरी हुई 
दौनों पूरे तो  मिल न सके  
पर राहत का अनुभव हुआ |
आशा 
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