Akanksha -asha.blog spot.com
13 दिसंबर, 2015
असलियत भूल गए
ऐसे सुर्खाव के पर लगे
जमीन पर पैर न टिके
असलियत भूल गए अपनी
आसमाँ छूने को चले
कुछ पल भी न गुजर पाए
खुद पर गुरूर आये
उड़ान भूल कर अपनी
जमीं पर मुंह के बल गिरे
मां की शिक्षा याद आई
अपनी सीमा मत भूलो
जितनी बड़ी चादर हो
उतने ही पैर पसारो |
आशा
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