एक दिन की बात है दो बच्चे बंद धर के दरवाजे
पर बैठे थे |अनुज बहुत खुश था क्यूं की उसका जन्म दिन था वह सोच रहा था कब मां आये
और उसके लिए जन्म दिन का तोफा लाए |
उसने अपने मित्र रवि से पूँछा”तू मेरी साल
गिरह पर आएगा ना आज शाम को “रवि ने कहा यार
मैं तो आ जाता पर मेरे पास गिफ्ट तो है ही नहीं तुझे क्या दूंगा |वैसे भी महीने का अंत होने को है |मेरी मम्मी
के पास पैसे भी तो न होंगे “खाली हाथ आना तो ठीक
न लगेगा “|
अनुज ने सलाह दी “
अरे गिफ्ट की क्या बात करता है वह मेरे पास जो डायरी है उसी को कागज़ में लपेट कर दे
देना पर उसमें तो कुछ लिखा भी है “रवि उदास स्वर में बोला | अरे उन पन्नों को फाड़ देना ||गिफ्ट तो
“
अरे उन पन्नों को फाड़ देना और दे देना “ गिफ्ट ही होता है तू आना जरूर “|वे दौनों इतनी गंभीरता से कर रहे थे कि
उनकी बातों को मैं आज तक ना भुला पाई |
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