31 मार्च, 2016

आरज़ू


थी आरज़ू मन में
कि तुझे अपनाऊँ
सारा प्यार अपना
तुझ पर ही लुटाऊँ
अपना सब कुछ वार दूं
तुझ में ही खो जाऊं
पर अर्जी मेरी व्यर्थ गई
यूंही खारिज हो गई
दूरियां बढ़ती गईं
आरज़ू अधूरी रही
मन में सिमटती गई
शायद तू नहीं जानती
तू मेरी कभी न थी
ना ही कभी होगी
है तू मेरी कल्पना
मुझ में ही समा गई |
आशा

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