
घुगरू वाली पायल पहन कर
पूरे आँगन में घूमती
एक रंगबिरंगी चिड़िया
उड़ आई 
मेरे साथ  चली 
दूर तक 
मुझसे मित्रता हुई
उसकी 
कुछ दिन यह क्रम
जारी रहा 
पर एक दिन उसे
किया गया  बंद
 सुन्दर से पिंजरे में
बहुत पंख  फड़फड़ाए
उसने 
 पर स्वतंत्र न हो पाई
 थक कर निढाल हो गई 
जैसे  जैसे उम्र बढ़ी मेरी 
 बंधन भी बढ़ने लगे
यह करो यह ना करो
की दूकान हो गई 
अधिक रोकाटोकी ने 
मन को विद्रोही किया
कोई बंधन स्वीकार न
था   
स्वतंत्र विचरण ,आचरण 
ऊंचाई तक जाने के
स्वप्न 
साकार करने के जब
दिन आए 
सजी सजीसजाई सुन्दर सी 
डोली
में की गई बिदाई 
ससुराल में रहने
को  
उस चिड़िया सी हो कर
रह गई
स्वप्न सिमटे मन के
कौने में 
ऊंची उड़ान कल्पना
में |
आशा   
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
Your reply here: