निर्भय हो विचरण करती
अपनी क्षमता जानती
अनजान नहीं परम्पराओं से
सीमाएं ना लांघती |
परिवार की है बैसाखी
हर कदम पर साथ देती
है कर्मठ और जुझारू
आत्मविश्वास से भरी रहती |
जी जान लगा देती
हर कार्य करना चाहती
हार उसे स्वीकार नहीं
खुद को कम ना आंकती |
है यही छुपा राज
नारी के उत्थान का
आज के समाज में
अपने पैर जमाने का
पर अभी भी मार्ग दुर्गम
पार करना सरल नहीं
है परीक्षा कठिन फिर भी
उसे किसी का भय नहीं |
आँखें नहीं भर आतीं उसकी
छोटी छोटी बातों पर
दृढ़ता मन में लिए हुए है
निर्भयता का है आधार |
दृढ इच्छा शक्ति से भरी
सजग आज के चलन से
अब नहीं है अवला
जीती जीवन जीवट से |
माँ बहन पत्नी प्रेमिका
ही नहीं बहुत कुछ है वह
जिस क्षेत्र में कदम रखती
सफलता उसके कदम चूमती |
है आज की नारी
अवला नहीं है
सर्वगुणसंपन्न है
बेचारी नहीं है |
आशा
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