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अपने बचपन में खूब की सैर
 हरेभरे जंगल की 
वृक्षों की छाँव में तपती दोपहर में 
बहुत ठंडक देता था जंगल 
ऐसा नहीं कि तब पेड़ काटे न जाते थे 
पर एक सीमा तक
कि पर्यावरण संतुलन ना बिगड़े
पर एक सीमा तक
कि पर्यावरण संतुलन ना बिगड़े
जैसे जैसे  जनसंख्या  का भार बढ़ा 
अंधाधुंध कटाई बढ़ गई 
जंगल बंजर भूमि बनने से न बच पाए 
मनुष्य अपने स्वार्थ में
 इतना अंधा हो गया कि यह तक भूला 
 द्रुत गति से पेड़ काटे तो जा सकते है
 पर एक पेड़ लगाना 
  उसे बड़ा करना है कितना मुश्किल
 दूर से एक लकड़हारा आया
 हाथ में लिए कुल्हाड़ी पेड़ काटने के लिए  
प्रकृति नटी ने देख उसे भय से 
वृक्ष की ऊंचाई पर पनाह पाई 
वह इस अनाचार को सह न सकी 
नयनों में आंसू भर आए
नयनों में आंसू भर आए
गर्मी बेइंतहा बढ़ी पेड़ों कि कटाई
से 
पंथी बेचारे छाँव को तरसे 
यही सब सोच 
कुछ लोगों में आया जागरण 
बड़े बड़े अभियान चलाए 
वृक्ष लगाओ पर्यावरण बचाओ 
जागरूक बच्चा तक हो गया 
बहुत गंभीर हो कर बोला 
कोई अन्य विकल्प तो होगा
 जो इस  वृक्ष का पर्याय हो 
बाक़ी तो कट गए
बाक़ी तो कट गए
इसे हाथ न लगाना 
है यह बहुत प्रिय मुझे 
यह बढ़ रहा है मेरी तरह 
पनप रहा है धीमी गति से | 
आशा
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