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आज की दुनिया में
मतलबियों की दूकान लगी है
हैं इतने मतलबी कि
मतलब निकल गया तो
पहचानते नहीं |
बहुत से तो एसे है कि
उनका रुख समझना नामुमकिन
ज्यादा ही सयाने हैं
बनते बहुत चतुर बहुत ही |
मतलबियों की दूकान लगी है
हैं इतने मतलबी कि
मतलब निकल गया तो
पहचानते नहीं |
बहुत से तो एसे है कि
उनका रुख समझना नामुमकिन
ज्यादा ही सयाने हैं
बनते बहुत चतुर बहुत ही |
घर में सेवा कभी न की
अब ढोते हो दूसरों को
कंधे पर कावड़ टांग कर
यह कहाँ का है न्याय|
घर से ही आरम्भ करो
परमार्थकी प्रक्रिया
तभी सफल हो पाएगी
जीवन की अभिलाषा |
लगा दाव पर सम्मान
मन को झझकोर रहा है
दुविधा है चुनने की
स्वहित या पर हित की|
सोच समझ पर है भारी
क्या करे अवला बेचारी
इस पार कुआ है
तो उस पार है खाई |
आशा
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