मालूम न था
किस धर्म में पैदा हुए
जिसने जो भी बताया मान लिया
प्रभु ने ऐसा रूप दिया
जिसने जो भी बताया मान लिया
प्रभु ने ऐसा रूप दिया
माली ने गुलदस्ता बनाया
रंग बिरंगे पुष्पों से सजाया
मानो विभिन्न परिधान में लिपटे
लोग खड़े हों एक समूह में
कोई खुद को हिन्दू कहता
कोई अपने को मुस्लिम बताता
कोई रूप सिक्ख का धरता
कोई बौद्ध धर्म अपनाता
कोई होता जैन
अनगिनत देवी देवता पूजे जाते
कभी तो हद हो जाती
दीमक का घर ही पुजने लगता
धर्म के नाम पर
शायद है एक परमात्मा के रूप अनेक
जिसकी जैसी मानसिकता
उसे वही दिखाई देता
भगवान् के रूप में
आस्था उसमें ही बढ़ती जाती
जिस ओर भीड़ होने लगती
कभी दिनचर्या में बदलाव के
लिए
व्रत उपवास किये जाते
कभी टोने टोटके करवाते
बाबाओं के चक्कर लगाए जाते
पर सच्चे अर्थों में
धर्म का ज्ञान न हो पाता
समझ से परे है धर्म की
परिभाषा
मानती हूँ धर्म है व्यक्तिगत
हम सब का धर्म है एक सत्ता के हाथ में
जो हर समय निगाह रखती है
हर कार्य सही है या गलत
पहले से भास् कराती है
हिन्दुस्तान में रहते है
बासुधैव कुटुम्बकम की भावना रखते हैं
बोली चाहे जो भी हो
बासुधैव कुटुम्बकम की भावना रखते हैं
बोली चाहे जो भी हो
हमारा धर्म है हिन्दुस्तानी |
आशा
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 11.4.19 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3302 में दिया जाएगा
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
धन्यवाद सूचना के लिए |
हटाएंआपकी ब्लॉग पोस्ट को आज की ब्लॉग बुलेटिन प्रस्तुति 125वां जन्म दिवस - घनश्याम दास बिड़ला और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान जरूर बढ़ाएँ। सादर ... अभिनन्दन।।
जवाब देंहटाएंसूचना हेतु आभार सर |
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर चिंतन...
जवाब देंहटाएंवास्तव में धर्म क्या है, ये आज भी समझ से परे की बात है।
धन्यवाद मीना जी टिप्पणी के लिए |
हटाएंगहरी बात
जवाब देंहटाएंधन्यवाद अनीता जी टिप्पणी के लिए |
हटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (13-04-2019) को " बैशाखी की धूम " (चर्चा अंक-3304) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
- अनीता सैनी
सूचना हेतु आभार अनीता जी |
जवाब देंहटाएंहिन्दुस्तान में रहते है
जवाब देंहटाएंबासुधैव कुटुम्बकम की भावना रखते हैं
बोली चाहे जो भी हो
हमारा धर्म है हिन्दुस्तानी
बहुत सुंदर ,सादर नमस्कार आप को
सुप्रभात
जवाब देंहटाएंधन्यवाद कामिनी जी टिप्पणी के लिए |
सुप्रभात
जवाब देंहटाएंसूचना हेतू आभार यशोदा जी |
धर्म का यही स्वरुप समाज में प्रचलित है ! सार्थक चिंतन !
जवाब देंहटाएं