भोर होती है शाम होती है
रात यूँ ही गुजर जाती है
कुछ करो या नहीं
जिन्दगी यूँ ही तमाम होती है |
व्यर्थ है यूँ ही जीना
केवल अकारथ
जीवन का बोझ ढ़ोना |केवल अकारथ
जब बुद्धि साथ छोड़ जाए
जीवन बोझ हो जाए
क्या फ़ायदा
ऐसे जीने का |
खुद से प्रेम ना कभी किया
ना ही कुछ आनंद लिया
तब भी लालसा रही
कुछ वक्त और मिल जाए
अभी तो कई काम बाक़ी हैं |
जब तक पूर्ण न हों सभी
जीने का अरमां अभी बाक़ी है
है यही कामना मेरी
कोई अधूरा काम न छूटे|
यदि सोचा हुआ सब पूर्ण हुआ
प्रभु का सानिध्य पा
हो कर भक्ति में लीन
जीवन सफल हो जाएगा |
आशा
जीवन का सत्य यही है कि सभी लोगों को सभी कार्य पूरे करने हैं। इस चक्कर मे मन बहुत विचलित रहता है। सुंदर कविता।
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
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हटाएंधन्यवाद नितीश जी |
हटाएंबहुत सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंधन्यवाद जी टिप्पणी के लिए |
हटाएंधन्यवाद अनीता जी |
जवाब देंहटाएंसूचना हेतु आभार सर |
जवाब देंहटाएंसुंदर कविता
जवाब देंहटाएंधन्यवाद टिप्पणी के लिए |
हटाएंबहुत सुन्दर!सार्थक सन्देश देती बेहतरीन प्रस्तुति !
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