जन्म से ही
शिशु को मिली पालकी
शिशु को मिली पालकी
पहला पालना मिला
माँ की गोद का
माँ की गोद का
दूसरा अपने वालों का
फिर आए दिन
नित नई बाहों में खेल
नित नई बाहों में खेल
बचपन बिताया
जी भर खेल कर
जी भर खेल कर
जवानी जब आई झांकती
माँ
को चिंता हुई
बेटी की बिदाई की
बेटी की बिदाई की
जब वर आया
घोड़ी पर चढ़ कर
घोड़ी पर चढ़ कर
धूमधाम से बिदाई हुई
पालकी में बैठ कर
पालकी में बैठ कर
तब भी चार कन्धों पर की सवारी
पालकी में हो कर सवार
चली ससुराल अपनी
चली ससुराल अपनी
जीवन सहजता से
सरलता से बीत गया
सरलता से बीत गया
धर्म कर्म में भी
दिया सहारा पालकी ने
कियेअधिकाँश देव दर्शन
इसी पालकी में बैठ
दिया सहारा पालकी ने
कियेअधिकाँश देव दर्शन
इसी पालकी में बैठ
अब आया समय
संसार से विदाई का
छोड़ कर यह देह
आत्मा ने ली बिदाई
संसार से विदाई का
छोड़ कर यह देह
आत्मा ने ली बिदाई
चार कन्धों पर की सवारी
अर्थी पर हो कर सवार चली
अच्छाई बुराई भलाई
के सारे कर्म
के सारे कर्म
साथ ले चली अपने
हर जगह महत्व
देख पालकी का
देख पालकी का
मन ही मन किया नमन
उन सब भागीदारों को
उन सब भागीदारों को
पालकी उठाने वालों को |
आशा
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (19-06-2019) को "सहेगी और कब तक" (चर्चा अंक- 3371) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सुप्रभात
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को सम्मिलित करने के लिए आभार सर |
सुन्दर रचना !
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
हटाएंटिप्पणी के लिए धन्यवाद साधना |
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
२४ जून २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
सूचना हेतु आभार श्वेता जी |
हटाएंबेहतरीन प्रस्तुति दी
जवाब देंहटाएंपालकी को जीवन की नश्वरता से जोड़ दिया। बेहद अच्छी अभिव्यक्ति है दीदी।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद मीना जी टिप्पणी के लिए |
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