18 जून, 2019

पालकी

जन्म से ही
 शिशु को मिली पालकी
पहला पालना मिला 
 माँ की गोद का
दूसरा अपने वालों का
फिर आए दिन
 नित नई बाहों में खेल
बचपन बिताया
 जी भर खेल  कर
जवानी जब आई झांकती
 माँ को चिंता हुई
 बेटी की बिदाई की
जब वर आया  
  घोड़ी पर चढ़ कर
 धूमधाम से बिदाई हुई
 पालकी में बैठ कर
तब भी चार कन्धों पर की सवारी
पालकी में हो कर सवार
 चली ससुराल अपनी 
जीवन सहजता से
 सरलता  से बीत गया
धर्म कर्म में भी
 दिया सहारा पालकी ने
कियेअधिकाँश देव दर्शन
 इसी पालकी में बैठ 
अब आया समय
 संसार से विदाई का 
छोड़ कर यह देह
 आत्मा ने ली बिदाई  
चार कन्धों पर  की सवारी
 अर्थी पर हो कर सवार चली
 अच्छाई बुराई भलाई 
के सारे कर्म
 साथ ले चली अपने
हर जगह महत्व
 देख पालकी का
मन ही मन किया  नमन
 उन सब भागीदारों को
पालकी उठाने वालों को |
आशा




9 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (19-06-2019) को "सहेगी और कब तक" (चर्चा अंक- 3371) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. सुप्रभात
    मेरी रचना को सम्मिलित करने के लिए आभार सर |

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  3. उत्तर
    1. सुप्रभात
      टिप्पणी के लिए धन्यवाद साधना |

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  4. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
    २४ जून २०१९ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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  5. पालकी को जीवन की नश्वरता से जोड़ दिया। बेहद अच्छी अभिव्यक्ति है दीदी।

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  6. धन्यवाद मीना जी टिप्पणी के लिए |

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