पति कोप से हुई श्रापित
शिला हुई गौतम नारी बेचारी
युग बीता अहिल्या बनी साक्षी
उस काल की घटनाओं की
कितनी ऋतुएँ आई गईं
शिला पर परत गर्त की चढ़ती गई
इस रूप में जीते जीते वह हारी
तब निदान जानना
चाहा
तभी ऋषी ने उपाय बताया
त्रेतायुग में जब श्री राम के
चरण रज शिला पर पड़ेगे
तभी उसे श्राप से मुक्ति मिलेगी
और समय बीता
वह उस काल की साक्षी हुई
राम नाम के जाप से
वह राम में खो गई
हार नहीं मानी उसने
पथरा गईं आँखें बाट जोहते
जैसे ही प्रभु राम के
चरण पड़े शिला पर
माथे पर चरण रज लगी
अहिल्या श्राप मुक्त हो गई
फिर से सजीव नारी हो गई |
आशा
सुप्रभात
जवाब देंहटाएंमेरी रचना की सूचना हेतु आभार सर |
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
२६ अगस्त २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
सूचना हेतु आभार श्वेता जी |
हटाएंवाह ।बहुत खूब ।
जवाब देंहटाएंएक बेकसूर नारी को
शिला के श्राप से मुक्ति मिली।
धन्यवाद सुजाता जी |
हटाएंबहुत बढ़िया ! सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |
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