है स्वागत आगत गणनायक का 
बहुत समय प्रतीक्षा करवाई 
तब जाकर दिए दर्शन अबकी  
सोचा समझा दुःख दर्द प्रजा का 
फिर की तैयारी जाने की 
अभी अभी  तो आए थे
स्थापना की थी मंदिर में
इतनी जल्दी क्या है जाने की
स्थापना की थी मंदिर में
इतनी जल्दी क्या है जाने की
सारे दुःख समेत चल दिए 
मन में व्यथा लिए सब की 
जल में समाधिस्थ हो रहे 
मन की शान्ति जल में खोज रहे 
अनंत चौदस को है बिदाई 
सुख करता दुःख हरता की 
बहुत खालीपन लगेगा 
 आसन रिक्त  देख तुम्हारा 
फिर से प्रारम्भ होगा वाट जोहना 
अगले बरस बप्पा के आगमन का |
आशा 
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति :)
जवाब देंहटाएंबहुत दिनों बाद आना हुआ ब्लॉग पर प्रणाम स्वीकार करें
धन्यवाद संजय टिप्पणी के लिए |
हटाएंआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 5.9.19 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3449 में दिया जाएगा
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
सूचना हेतु आभार सर |
हटाएंगणपति बप्पा मोरया , अगले बरस तू जल्दी आ !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |
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