हो तुम मेरा सम्बल
अकेली नहीं हूँ मैं
जो भी हैं मेरे साथ
सब हैं अलग अलग
पर मकसद सब का एक
एक साथ मिलकर
देते हर काम को अंजाम
कोई नहीं ऐसा
जो
उससे मुंह फेरे
उन सब का मनोबल
टूटा
नहीं है
आशा पर टिके हैं
है आत्मविश्वास का
साथ
तुम्हारे हाथों का
संबल भी तो है
सफलता पाने के लिए
सर पर हाथ तुम्हारा
पूरा
भी तो है |
आशा
आशा

आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 24.10.2019 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3498 में दिया जाएगा । आपकी उपस्थिति मंच की गरिमा बढ़ाएगी ।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
दिलबागसिंह विर्क
सुप्रभात
जवाब देंहटाएंमेरी रचना शामिल करने के लिए आभार सर |
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार २५ अक्टूबर २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
सूचना हेतु आभार श्वेता जी दीपावली की शुभ कामनाएं आपको |
हटाएंबेहतरीन।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर।
धन्यवाद टिप्पणी के लिए
हटाएंसुजाता जी |
वाह ! सुन्दर रचना ! एक तेरा साथ हमको दो जहाँ से प्यारा है !
जवाब देंहटाएं