किससे कहें किसको सुने
सभी खुद को समझते 
बहुत सिद्धहस्त  विद्वान
 उनसा कोई नहीं है 
खुद को सर्वोपरी जान
कुछ अलग विचार रखते हैं
 वे  हर बार अपनी
 बात पर सही होते हैं 
किसी का तर्क भी
 उन्हें रास नहीं आता 
उसे कुतर्क में बदलते
देर नहीं लगती उनको 
पूरे जोश से बहस करते हैं
 खुद ही ठहाके लगाते
हैं
यह तक नहीं सोच पाते कि 
तर्क कुतर्क में कब
बदला 
मेरी स्थिति बहुत विचित्र
 हो जाती है तब  
मौन की शरण में जाना होता है 
 या
नकली मुस्कान से बातों को
 वहीं विराम देना पड़ता  
नहीं तो क्या लाभ 
बातों को बतंगड़ में बदलने
का 
कहीं भी शान्ति स्थापित करने के लिए 
इससे अच्छा विकाल्प कोई नहीं होता
 बहस वहीं
रह जाती है
 शान्ति चारो और फैल कर
 असीम आनंद से भर देती है 
है न यह  कितना सरल उपाय
 सब से सामंजस्य स्थापित करने का
|
आशा
आशा

बहुत सुन्दर आत्मकथ्य।
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
धन्यवाद शास्त्री जी टिप्पणी के लिए |
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 23 मार्च 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबिलकुल सही समाधान ! एक चुप सबको हरा देती है ! सुन्दर रचना!
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |
हटाएंबहस करना बेकार है पर हर कोई सही कैसे हो सकता है ?
जवाब देंहटाएंधन्यवाद प्रतिभा जी टिप्पणी के लिए |
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