चल सजनी आ
चलें वहाँ
आकाश धरा
मिलते जहां
वहाँ छोटा सा
घर बनाएँ
हरियाली भरपूर
लगाएं
जब भी पंछी
वहाँ आएं
दाना चुगें
प्यास बुझाएं
कितना सुखद
एहसास होगा
तृप्ति का
आभास होगा |
संचित सुखद पल
जीने को
मन हो रहा
बेकल
वह वहीं शांत
हो पाएगा
जब तुम्हारा
साथ होगा |
परम शान्ति
का अनुभव होगा
कोइ व्यवधान
नहीं होगा
प्रभु आराधन
में लीन
मधुर ध्वनि
मुरलिया की
जब भी सुन
पाएंगे
श्रद्धा सुमन
बरसाएंगे
परम प्रेम का
आगाज़ होगा
जीवन तभी
सार्थक होगा
दूर क्षितिज
तक कभी
शायद ही कोई
पहुंचा होगा
पर हमें न कोइ
रोक सकेगा
वहीं हमारा घर
होगा |
आशा
सार्थक प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सर टिप्पणी के लिए |
हटाएंमधुर साध ! सुन्दर सृजन !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |
हटाएंआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 14.5.2020 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3701 में दिया जाएगा। आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
सूचना हेतु आभार सर |
हटाएंबहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति आदरणीया दीदी
जवाब देंहटाएंधन्यवाद अनीता जी टिप्पणी के लिए |
हटाएंधन्यवाद ओंकार जी टिप्पणी के लिए |
जवाब देंहटाएंधन्यवाद नीलेश जी टिप्पणी के लिए |
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में सोमवार 18 मई 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सहित आभार सूचना हेतु मेरी रचना शामिल करने के लिए |
हटाएंसुंदर अभिव्यक्ति आदरणीया।
जवाब देंहटाएंसादर।
धन्यवाद श्वेता जी टिप्पणी के लिए |
हटाएंबहुत सुंदर अभिव्यक्ति आदरणीया
जवाब देंहटाएंअनुराधा जी टिप्पणी के लिए धन्यवाद |
हटाएंबहुत सुन्दर सार्थक...।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सुधा जी टिप्पणी के लिए |
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