09 मई, 2020

हो एक बबूल का पेड़


 हो  बबूल के पेड़ जैसे
बड़ी समानता है दौनों में  
क्या लाभ बबूल से  दुनिया को
ना तो पथिक को छाँव  दे पाता  
ना ही पशुओं का भोजन बन  पाता
सड़क चलते राहगीरों को कष्ट ही दे जाता  |
कंटक भूले से यदि पैरों के नीचे आ जाए  
 लहूलुहान उन्हें  कर जाते  
तुम्हारे शब्द  कंटक होते  तीक्ष्ण
चुभ जाते  गहरे घाव कर जाते  
कितनी भी कोशिश करो
 सरलता से कंटक निकल नहीं पाते |
हो इतने कटूभाषी हर शब्द चोट पहुंचाता है
प्यार नाम की चिड़िया का कहीं पता नहीं होता
तुम रूखे इसी बबूल की पत्तियों जैसे
कहीं हरियाली नजर नहीं आती
 होली दिवाली  मुस्कुराने पर अचम्भा ही होता है
नेत्र फटे  से रह  जाते हैं अचानक हुआ परिवर्तन देख  
बबूल के पुष्प इतने नर्म कैसे हुए ?
कई बार मन में विचार आता है
कभी तो कोई कौना
ऐसा भी होता होगा  मन में
जिसमें छिपी होंगी  कोमल सी भावनाएं
जो  उभर कर आ जाती हैं
 सब के समक्ष अनजाने में |
वैसे तो बबूल में ना तो होती हरियाली
ना है वह उपयोगी छाव के लिए  
केवल भार बढ़ा रहा है भूमि पर
पर लकड़ी है काम की उसकी
 कोई भी व्यर्थ नहीं होता इस धरती पर
अच्छाई और बुराई का मेल ही है आदमी
समय की सौगात है जन्म मनुष्य का
काँटों से भरा  यह पेड़ बबूल का |
                                                आशा

10 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 09 मई 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. यशोदा जी मेरी रचना की लिंक को सांध्य दैनिक मुखरित मौन में स्थान देने के लिए आभार |

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  2. जय मां हाटेशवरी.......

    आप को बताते हुए हर्ष हो रहा है......
    आप की इस रचना का लिंक भी......
    10/05/2020 रविवार को......
    पांच लिंकों का आनंद ब्लौग पर.....
    शामिल किया गया है.....
    आप भी इस हलचल में. .....
    सादर आमंत्रित है......

    अधिक जानकारी के लिये ब्लौग का लिंक:
    https://www.halchalwith5links.blogspot.com
    धन्यवाद

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    1. सुप्रभात
      आज के अंक में मेरी रचना शामिल करने के लिए सूचना देने के लिए आभार सर|

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  3. सुन्दर रचना ! प्रकृति संतुलन बना कर चलती है उसका कोई अवयव कोई अंग निष्प्रयोजन नहीं होता !

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  4. सुप्रभात
    टिप्पणी हेतु आभार सहित धन्यवाद साधना |

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  5. बहुत सुन्दर सार्थक प्रस्तुति

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