26 जून, 2020

आदत नशे की

सोच रहा था एक बात रमैया की कही
जीवन में नशा न किया तो क्या किया
बार बार गूँज रहे थे शब्द उसके कानों में  
पर भूला नुक्सान कितना होगा तन मन  को |
अपना आपा खोकर सड़क पर झूमते झामते
  गिरते पड़ते लोगों को आए दिन देखता था
हर बार सोचता  है यह आदत कैसी
क्यूँ गुलाम होते लोग ऐसी आदतों के |
दिन में जाने कितने वादे कितनी कसमें खाते
शाम पड़े ही भूल जाते कहने लगते
 कौनसे वादे कैसी कसमें ?मैंने कब किये?
 पीने में है बुराई क्या? गम ही तो दूर करते हैं अपने |
यदि खुश होते वे  कहते  
मौज मस्ती में  पी ली है ज़रा सी
इसमें बुराई क्या है?
 मित्रों ने पिला दी है रोज कौन पीता पिलाता है |
अपनी बात पर अडिग रहने को अनेक तर्क देते
यही सब  सोचते एक मधुशाला के सामने से गुजरा
दूर से ही हाथ जोड़े प्रभु के |
कोई भी नशा सुखकर नहीं होता
कितने धर उजड़े हैं नशे की आदतों से
 शिक्षा मिली है उसे इनसे दूर रहने की
तभी यह नशे की बीमारी गले नहीं पड़ी है |
आशा  

    

7 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 27 जून 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. धन्यवाद नवीन जी टिप्पणी के लिए |

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  3. सुप्रभात
    सूचना हेतु आभार दिव्या जी |

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  4. इस दुर्व्यसन से जितना दूर रहें उतना ही श्रेयस्कर है ! सुरापान के बाद कोई वायदा, कोई संकल्प, कोई वचन याद नहीं रहता !

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