कोई भी बता नहीं पाता
जन्म की तारीख तो
याद रह जाती है
पर मृत्यु अथिति सी
आता है
आहट तक नहीं होती उसके आने की
परिजनों को रुला कर
चली जाती है
खुद को तो यह अहसास भी नहीं होता
कब कहाँ कैसे आई
आँखें बंद होते ही प्राण
छूटते ही
मनुज खो जाता है
गहन अन्धकार के आगोश
में
वह तब क्या सोचता है
आज तक कोई नहीं जान
पाया
यह अनजानी गुत्थी है
कोई भी हल नहीं कर पाया
इस अवस्था से बाहर निकल
किसी ने बयान नहीं
किया
आखिर वह कहाँ रहा
कैसे रहा
अनुभव इन पलों का
अपने साथ ही ले गया |
आशा
आशा
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 22 जून 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसूचना हेतु आभार यशोदा जी |
हटाएंअजी नहीं ! पढ़िए ज़रा सर्च करके ! इस विषय पर विपुल साहित्य है ! और कई लोगों के संस्मरण भी हैं जो मृत घोषित होने के बाद पुन: जीवित हो गए ! सबसे दिलचस्प विषय है ! मैंने इस पर काफी साहित्य पढ़ा है ! आप भी खोज कर पढ़ डालिए ! आपको भी मज़ा आयेगा !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |
हटाएंनिर्वेद की सुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सर टिप्पणी के लिए |
हटाएंसुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंधन्यवाद ओंकार जी टिप्पणी के लिए |
हटाएंधन्यवाद नवीनजी टिप्पणी के लिए |
जवाब देंहटाएंधन्यवाद नवीन जी टिप्पणी के लिए |
जवाब देंहटाएंNice
जवाब देंहटाएंLoanonline24.com