प्रातः सूर्य देव चले देशाटन को
हो कर अपने रथ पर सवार
बाल रश्मियाँ बिखरी हैं हर ओर
अम्बर हुआ सुनहरा लाल |
खिली धूप नीलाम्बर में मन भावन
कोहरा छटा है आसमान का रंग निखरा है
बादल ने विदा ली है
अब बहार आई है
पंछी भी हुए चंचल सचेत
उड़ते फिरते करते किलोल
इस डाल से उस डाल पर |
पेड़ो पर छाई हरियाली
फूल खिले हैं डाली डाली
बगिया महक रही है सारी
रंग बिरंगे पुष्पों की सुगंघों से |
बिछी श्वेत पुष्प शैया पारिजात वृक्ष के नीचे
देखते
ही बनती है छटा उसकी
मन करता वहीं बैठूं उस बगिया में
दृष्टि पटल पर समेट उसे हृदय में रखूँ
सुबह की धूप का आनंद उठाऊँ |
बच्चे खेलते वहां झूलते इन झूलों पर
तरह तरह के करतब दिखाते
ऊपर से नीचे आते धूम मचाते
नीचे से ऊपर जाते फिसल पट्टी से
खुश होते किलकारी भरते |
आशा
ताज़गी युक्त कविता
जवाब देंहटाएंThanks for the comment
हटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 28 अक्टूबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
हटाएंसूचना के लिए धन्यवाद यशोदा जी |
सुबह का सुन्द्र काव्य चित्र।
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
हटाएंटिप्पणी हेतु आभार सहित धन्यवाद सर |
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 29.10.2020 को चर्चा मंच पर दिया जाएगा। आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी|
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
दिलबागसिंह विर्क
सुप्रभात
जवाब देंहटाएंमेरी रचना की सूचना के लिए आभार सहित धन्यवाद |
अति सुंदर ।
जवाब देंहटाएंThanks for the comment
हटाएंवाह ! सुन्दर शब्द चित्र मनोरम सुबह का ! मनमोहक रचना !
जवाब देंहटाएं