25 नवंबर, 2020

कोरोना



                                         कोरोना आया बताए बिना  

पंख फैलाकर उड़ा बिना पंख

मटियामेट कर गया जीवन को

सामान्य जन जीवन अस्तव्यस्त हुआ |

फिर लौट कर मुंह चिढाया

न कहा अलविदा फिर से हाबी हुआ

शायद जाने वाला मार्ग भूला |

महामारी जैसे शब्द से

अब तो नफरत सी  हो गई है

पहले तो कभी सुना नहीं था

हाँ किताब में जरूर  पढ़ा था |

है इसका इतना विकराल रूप

स्वप्न में भी कल्पना न थी

 ऐसे दहशत भरे दिनों की

 जाने कितने मरे सही आंकड़ा नहीं मालूम

 शेष  भोग रहे त्रासदी इस महामारी की |

प्रभू   परीक्षा ले रहा  धरती के  निवासियों की

कितनी प्रगति की है चिकित्सा के क्षेत्र में

 कोई निवारण का स्त्रोत खोजा नहीं है

केवल समाचार  ही सुने  वेक्सीन आने के |

आशा

 

 

 

 

 

7 टिप्‍पणियां:

  1. महामारी इसीको कहते हैं ! अनजान लोगों को अपनी विकरालता से परिचित करा रहा है कोरोना !

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  2. जी सत्य
    आंकड़े डराते हैं अब

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  3. सुप्रभात
    मेरी रचना की सूचना देने के लिए आभार यशोदा जी |

    जवाब देंहटाएं

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