आज मुझे यह कहने दो
कि मेरा सोच गलत नहीं था
नया परिवेश नया मकान
निभाना इतना सहज नहीं था
फिर भी मैंने तालमेल किया है
अब कोई समस्या नहीं है ।
खाली घर और हम अकेले
करते तो क्या करते
आने को हुए बाध्य
कैसे अकेले रह पाते वहाँ ।
स्वास्थय ने भी किनारा किया
वह भी साथ न दे पाया
आखिर वक्त से सम्झौता किया
यहाँ आने का मन बनाया |
आशा
मार्मिक...
जवाब देंहटाएंबहुत ही कोमल रचना...
Thanks for the comment
जवाब देंहटाएंवक्त की नजाकत और ज़रुरत को पहचानना हमेशा उचित होता है ! परिस्थितियों के अनुसार निर्णय लेने में ही सबकी भलाई होती है !
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