09 जनवरी, 2021

आज मुझे यह कहने दो

 


आज मुझे यह कहने दो

कि मेरा सोच गलत नहीं था

नया परिवेश नया मकान

निभाना इतना सहज नहीं था 

फिर भी मैंने तालमेल  किया है

अब कोई समस्या  नहीं है ।

खाली घर और हम अकेले

करते तो  क्या करते

आने को हुए बाध्य

कैसे अकेले रह पाते वहाँ ।

 स्वास्थय ने भी किनारा किया

वह भी साथ न दे पाया

आखिर वक्त से सम्झौता किया

यहाँ आने का मन बनाया |

आशा

3 टिप्‍पणियां:

  1. मार्मिक...
    बहुत ही कोमल रचना...

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  2. वक्त की नजाकत और ज़रुरत को पहचानना हमेशा उचित होता है ! परिस्थितियों के अनुसार निर्णय लेने में ही सबकी भलाई होती है !

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