हे हरी तेरा वंदन
मन को बड़ा सुकून देता
ज़रा समय भी बदलता
बेचैन किये रहता है |
है कितना आवश्यक
सुमिरन तुम्हारा
समय पर ध्यान तुम्हारा
आदतों में सुधार
होता है |
फिर पूजा करो या अर्चना
प्रातः उठते ही
याद आ जाता है
आज क्या करना है |
एक तो नियमित जिन्दगी
होती
सभी कार्य समय पर होते
किसी का कोई तंज
सहना नहीं पड़ता |
अब जिन्दगी बेजान
नजर नहीं आती
जिन्दगी में रवानी
आती|
है यही उपलब्धी बड़ी
जो जाने अनजाने में
आदत में शुमार हो जाती
अपना पंचम फहराती |
बहुत सी समस्याएँ
हल हो जाती हैं
कष्ट कम होते जाते
हैं
तुम्हारे पास होने
से |
वरदहस्त तुम्हारा जब रह्ता सिर पर
मै वही नहीं
रह्ती
तुममें इतनी खो जाती
हूँ
दुनियादारी से दूर चली
जाती हूँ |
अपनी इच्छाओं
अभिलाषाओं को
जानने लगती हूँ
है क्या स्वनियंत्रण
पहचानने लगती हूँ |
आशा
वाह बहुत सुन्दर रचना ! निश्चित रूप से भक्ति में बड़ी शक्ति होती है !
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंमेरी पोस्ट की सूचना के लिए आभार सहित धन्यबाद सर |
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जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद ओंकार जी |
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आलोक जी
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