स्वप्नों का इतिहास सजीला
कहाँ कहाँ नहीं पढ़ा
मैंने
इतिहास तो इतिहास है
मैंने भूगोल
में भी पढ़ा है|
प्रतिदिन जब सो कर
उठती हूँ
अजब सी खुमारी रहती है
कभी मस्तिष्क रिक्त
नहीं रहता
उथल पुथल तो रहती ही है |
यदि एक स्वप्न ही
रोज रोज आने लगे
कहीं कोई अनर्थ न हो जाए
शुभ अशुभ के चक्र
में फंसती जाती हूँ |
कई पुस्तकें टटोलती हूँ
कहीं कोई हल मिल जाए
पर कभी कभी ही
यह सपना सच्चा होता है |
महत्व बहुत दर्शाता है
स्वप्नों का आना जाना
हर स्वप्न कुछ कह
जाता है
ऐसा इतिहास बताता है
|
बड़े युद्ध हुए है इन के कारण
खोजे गए शगुन
अपशगुन के कारण |
पर यह भी
कहा जाता
मन में हों जैसे
विचार
वैसे ही सपने आते
वही इतिहास की
पुस्तकों में
सजोकर रख दिए जाते
हैं |
आशा
|
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
हटाएंटिप्पणी के लिए धन्यवाद आलोक जी |
सादर नमस्कार,
जवाब देंहटाएंआपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार ( 26-02-2021) को
"कली कुसुम की बांध कलंगी रंग कसुमल भर लाई है" (चर्चा अंक- 3989) पर होगी। आप भी सादर आमंत्रित हैं।
धन्यवाद.
…
"मीना भारद्वाज"
सुप्रभात
हटाएंमेरी पोस्ट की सूचना के लिए आभार मीना जी |
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सुप्रभात
जवाब देंहटाएंटिप्पणी के लिए धन्यवाद शास्त्री जी
बहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंThanks for the comment
हटाएंभाव पूर्ण रचना
जवाब देंहटाएंThanks for the comment m
हटाएंमन में हों जैसे विचार
जवाब देंहटाएंवैसे ही सपने आते
सही कहा दीदी। कई बार तो बड़े अजीब सपने भी आते हैं।
Thanks for the comment
हटाएंबहुत सही अभिव्यक्ति है आपकी आशा जी । जैसे विचार हों, वैसे ही स्वप्न आया करते हैं ।
जवाब देंहटाएंThanks for the comment sir
जवाब देंहटाएंबढ़िया रचना ! सच है जो विचार मन में दिन भर उथल पुथल मचाते हैं स्वप्न में भी वही आते हैं !
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