क्षिति, जल ,पावक ,
गगन समीर
सीमित हैं  मात्रा में 
उपयोगी हैं  
प्रकृति का  आँचल  
हरा भरा हैं 
दीखते हैं  पर्याप्त   
 यदि युक्ति हो    
आते  उपयोग में
कम  पड़ते 
जब ठीक से नहीं
दोहन होता
कद्र उनकी न हो
स्रोत तो स्रोत
सीमित संसाधन
सहेजे जाते
खोजना सभी लोग
चाहते रहे
मीठे जल के स्त्रोत 
पानी  के लिए |  
आशा 

बहुत बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आलोक जी टिप्पणी के लिए |
बहुत अच्छी कविता, आदरणीया...
जवाब देंहटाएंसाधुवाद 🙏
सुप्रभात
हटाएंटिप्पणी के लिए आभार सहित धन्यवाद वर्षा जी |
सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंटिप्पणी के लिए आभार सहित धन्यवाद सर |
वाह ! जल दिवस पर बहुत ही सार्थक प्रस्तुति ! चिंतनपरक सृजन ! बहुत सुन्दर !
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंटिप्पणी के लिए धन्यवाद साधना |