29 जून, 2021

काली और चांदनी रात


 











है तू रात की  चटक चांदनी

मैं   अंधेरी काली रात

सारा अम्बर  खुला है

 मेरे लिए तुम्हारे लिए |

एक बात अवश्य  अनुभव की  मैंने

तुमने याद किया हो कि नहीं

है चाँद की रौशनी

केवल  तुम्हारे लिए  न कि मेरे लिए |

कभी ईर्षा भी होती है तुमसे

 सब को है  इतना लगाव तुमसे  कैसे

तुमने कभी सोचा हो  या नहीं  

पर मुझे भय बना  रहता है |

तुम हो विशेष सब के लिए

पर मुझसे सब रहते  भयभीत  

काली रात में बाहर निकलना न चाहते

 अंधेरी  रात में बाहर की हवाखोरी से कतराते |

मुझे  ऐसा लगता है

जितना सुकून मिलता है

 प्रेमी युगलों को मेरी बांहों में आकर

वे उतनी ही दूरी तुमसे बना कर चलते |

बालवृन्द तो मुझसे ही भय खाते

चटक चांदनी में आकर झूम झूम जाते

पर क्यूँ करूं मैं तुम से तुलना 

दौनों का महत्व हैं समान दूसरों के लिए |

हम आपस में क्यूँ उलझें

ना तो मुझमें ना हीं तुझ में

जिसको हो जैसी आवश्यकता

वे वहीं दौड़ कर आते |

आशा 






आशा

10 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 01 जुलाई 2021 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

    !

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सुप्रभात
      मेरी रचना की सूचना के लिए आभार सर |

      हटाएं
  2. उत्तर
    1. सुप्रभात
      धन्यवाद ओंकार जी टिप्पणी के लिए |

      हटाएं
  3. है तू रात की चटक चांदनी

    मैं अंधेरी काली रात

    सारा अम्बर खुला है

    मेरे लिए तुम्हारे लिए |
    वाह!!!
    बहुत सुन्दर।

    जवाब देंहटाएं
  4. पूर्णिमा और अमावस्या का सुन्दर तुलनात्मक चित्रण ! बहुत शानदार रचना !

    जवाब देंहटाएं
  5. सुप्रभात
    धन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |

    जवाब देंहटाएं

Your reply here: