है तू रात की चटक चांदनी
मैं अंधेरी काली रात
सारा अम्बर खुला है
मेरे लिए तुम्हारे लिए |
एक बात अवश्य अनुभव की मैंने
तुमने याद किया हो कि नहीं
है चाँद की रौशनी
केवल तुम्हारे लिए न कि मेरे लिए |
कभी ईर्षा भी होती है तुमसे
सब को है इतना लगाव तुमसे कैसे
तुमने कभी सोचा हो या नहीं
पर मुझे भय बना रहता है |
तुम हो विशेष सब के लिए
पर मुझसे सब रहते भयभीत
काली रात में बाहर निकलना न चाहते
अंधेरी रात में बाहर की हवाखोरी से कतराते |
मुझे ऐसा लगता है
जितना सुकून मिलता है
प्रेमी युगलों को मेरी बांहों में आकर
वे उतनी ही दूरी तुमसे बना कर चलते |
बालवृन्द तो मुझसे ही भय खाते
चटक चांदनी में आकर झूम झूम जाते
पर क्यूँ करूं मैं तुम से तुलना
दौनों का महत्व हैं समान दूसरों के लिए |
हम आपस में क्यूँ उलझें
ना तो मुझमें ना हीं तुझ में
जिसको हो जैसी आवश्यकता
वे वहीं दौड़ कर आते |
आशा
आशा
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 01 जुलाई 2021 को लिंक की जाएगी ....
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
!
सुप्रभात
हटाएंमेरी रचना की सूचना के लिए आभार सर |
उत्कृष्ट रचना
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
हटाएंधन्यवाद ओंकार जी टिप्पणी के लिए |
बहुत बहुत सुन्दर रचना है
जवाब देंहटाएंThanks for the comment sir
हटाएंहै तू रात की चटक चांदनी
जवाब देंहटाएंमैं अंधेरी काली रात
सारा अम्बर खुला है
मेरे लिए तुम्हारे लिए |
वाह!!!
बहुत सुन्दर।
Thanks for the comment
जवाब देंहटाएंपूर्णिमा और अमावस्या का सुन्दर तुलनात्मक चित्रण ! बहुत शानदार रचना !
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |