मन मयूर
कभी गुनगुनाता
गाता नाचता
मगन होता
आनेवाले कल का
आगाज कर
अपनी दशा जता
स्वागत कर
दुगुनी प्रसन्नता
बाहों में भर
बल्लियों उछलता
है प्रतिक्रया
कोई खेल नहीं है
बेचैनी की अस्थिर
दशा का कोई
मेल नहीं है
है छोटी सी झलक
मन क्या सोचे
स्पष्ट होने लगा है
मन मयूर
नृत्य की प्रगति में
बढा के थिरकन
खुशी में धड़कन
वृद्धि हुई है |
आशा
बहुत बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आपका बहुत टिप्पणी के लिए
हटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आपका बहुत टिप्पणी के लिए
जवाब देंहटाएंवाह ! सुन्दर सृजन !
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |