ना स्वर मिले न ताल  
 कैसा है  संगीत सोच हुआ बेहाल  
शब्द विन्यास भी
खोखला 
मन में पीड़ा का दंश
चुभा |
यदि थोड़ी भी मिठास
होती 
जिन्दगी बड़ी खुश रंग
होती 
यह रचना है बेसुरी बेनूर
 
 है इतनी बेरंग किसी से मेल न खाती |
जब भी  सुनी जाती 
मन पर बोझ बढाती
चाहत नहीं उसे सुनने की
ख्याल भी  नहीं आता कभी
खुश होने का | 
बेकरार मन की पीड़ा दर्शा कर
 क्या लाभ दूसरों को दिल का नासूर दिखा   
  दिल की पीड़ा
दर्शाने का 
जब कोई हल न समक्ष
आता |
यदि सही हल निकलता 
संगीत मधुर हो जाता
लय ताल का बोध होता
प्यारी सी रचना जन्म
लेती |

सादर नमस्कार,
जवाब देंहटाएंआपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार (27-08-2021) को "अँकुरित कोपलों की हथेली में खिलने लगे हैं सुर्ख़ फूल" (चर्चा अंक- 4169) पर होगी। चर्चा में आप सादर आमंत्रित हैं।
धन्यवाद सहित।
"मीना भारद्वाज"
सुप्रभात
जवाब देंहटाएंमेरी रचना की सूचना के लिए आभार मीना जी |
मन का सितार बजाये जाइए ! मधुर रचना ही उपजेगी ! सुन्दर सृजन !
जवाब देंहटाएंThanks for the comment
जवाब देंहटाएंजब मन में पीड़ा का दंश हो तो कोई भी सुर बेसुरा ही लगता है।
जवाब देंहटाएंसटीक एवं सुन्दर सृजन।
सुप्रभात
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सुधा जी टिप्पणी के लिए |