है
मेरी
चाहत
अपनी ही
तुम्हारी नहीं
स्वप्नों में सजी है
ख्यालों में बसी रहे
या विलुप्त होने लगे
नहीं है दरकार मुझे |
ओ
चन्दा
चमको
आधी रात
तारों के साथ
मुझे भाने लगा
रहना तेरे साथ
रात भर तारे गिनूं
भोर होते ही उठ जाऊं |
हे
कान्हां
तुम्हारी
अनुरागी
भक्ति भाव से
करूं आराधन
तन मन धन से
दिन में भोग लगाऊँ
करो पूरी मेरी कामना |
आशा
आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा 25.09.2021 को चर्चा मंच पर होगी।
जवाब देंहटाएंआप भी सादर आमंत्रित है।
धन्यवाद
दिलबागसिंह विर्क
सुप्रभात
हटाएंआभार दिलबाग जी मेरी रचना की सूचना के लिए |
खूबसूरत प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
हटाएंधन्यवाद ओंकार जी टिप्पणी के लिए |
बहुत सुन्दर !
जवाब देंहटाएंThanks for the comment sadhna
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