हम साहब तुम नौकर
हम साहब तुम नौकर हमारे
यह भाव कभी ना सफल हुआ है
                     जब भी देखा इस दृष्टिसे 
मन में रोष पैदा हुआ है |
 कैसी सोच उभरी थी मन में 
अब सोच कर शर्मिन्दा हूँ 
काश पहले से ही सचेत होते 
झूठा अहम् न पालते 
तभी जमीन पर टिक पाते 
 आँखें मिला कर जी पाते |
जब तक कुर्सी पर रहे आसीन
 पहले  विचार मन में होते 
पर पद  छिनते ही
सभी जमीन पर आजाते |
जब पहले भी अंतर न था जब बच्चे थे  
फिर यह भाव उपजा ही क्यों 
क्या यह तंग दिल  होने का संकेत नहीं 
 ईर्षालू  पैदा हुए हैं इस जरासे विचार से |
यह विचार था मिथ्या अभिमान 
 अब समझ में आया 
पर अब  पछताने से लाभ क्या 
बीता समय लौट कर न आया |
आशा
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Ac

बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंThanks for the comment sir
जवाब देंहटाएंसार्थक विचार ! बढ़िया रचना !
जवाब देंहटाएंThanks for the comment
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