ओ शरद पूनम के चाँद
तुम आए ठंडी हवा के साथ
मैंने खीर का भोग लगाया है
अमृत वर्षा के लिए है |
ऐसी है क्या बात
मिठास दुगुनी हो जाती
मिलते ही रात्रि में
तुम्हारी चांदनी का साथ |
जाने कितने रोगों का
उपचार है तुम्हारे पास
तुम हो अदभुद चिकित्सक
उन के जिनने सेवन किया प्रसाद
श्वास जैसे मर्ज के लिए |
सफल साहित्यिक आयोजन
किये जाते हर वर्ष
जब तुम आते
नृत्य निशा भी आयोजित होती आज |
गीतों का आनंद ही कुछ और होता
तुम्हारी छत्र छाया में
सभी मनोयोग से हिस्सा लेते
इस आयोजन में |
शरद पूर्णिमा की चमक अनोखी
मन मोह रही है
चंद्रमा की रश्मियाँ झलक रही हैं
मौसम रंगीन हुआ है आज |
आशा
बेहतरीन रचना
जवाब देंहटाएंधन्यवाद ओंकार जी टिप्पणी के लिए |
हटाएंधन्यवाद तुलसी जी |
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंआलोक जी धन्यवाद टिप्पणी के लिए |
वाह ! शरद पूर्णिमा के उत्सव आयोजन की मनोरम झाँकी ! चाँदनी के स्पर्श से दुगुनी मधुर हुई खीर का तो स्वाद ही अनुपम होता है ! बहुत सुन्दर रचना !
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