07 अक्तूबर, 2021

तरुनाई


 

हार तेरा सिंगार तेरा है अद्भुद मन मोहक

 स्वप्न में भी न देखी  कभी ऎसी सुकुमारी  

 ऐसी तेजस्वी मनमोहिनी सूरत है तुम्हारी 

निगाहें हटना नहीं चाहतीं नूरानी चेहरे से |

 आनन चूमती तेरा काली काकुल

 आकर्षण दुगुना करतीं चोटियाँ लम्बे केशों की

गालों में पड़ते डिम्पल लगते आकर्षक

क्या आकर्षण है तुझ में तेरी तरुनाई में |

जहां से निकलती है महक जाती सारी बगिया   

गजरे की सुगंध देती है सूचना तेरे आगमन की

 केशों को सजा लेती है  मोगरे की सुन्दर वेणी से |

अब समझ में आया राज तेरी तरुनाई का

तूने उसे सजाया सवारा है बड़े मनोयोग से

मन का सौन्दर्य झलक रहा तन के कौने कौने से

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