हार तेरा सिंगार तेरा है अद्भुद मन मोहक
स्वप्न में भी न देखी कभी ऎसी सुकुमारी
ऐसी तेजस्वी मनमोहिनी सूरत है तुम्हारी
निगाहें हटना नहीं चाहतीं नूरानी चेहरे से |
आनन चूमती तेरा काली काकुल
आकर्षण दुगुना करतीं चोटियाँ लम्बे केशों की
गालों में पड़ते डिम्पल लगते आकर्षक
क्या आकर्षण है तुझ में तेरी तरुनाई में |
जहां से निकलती है महक जाती सारी बगिया
गजरे की सुगंध देती है सूचना तेरे आगमन की
केशों को सजा लेती है मोगरे की सुन्दर वेणी से |
अब समझ में आया राज तेरी तरुनाई का
तूने उसे सजाया सवारा है बड़े मनोयोग से
मन का सौन्दर्य झलक रहा तन के कौने कौने से
सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आलोक जी टिप्पणी के लिए |
वाह ! सुन्दर चित्रण नायिका के सौन्दर्य का ! बहुत खूब !
जवाब देंहटाएंThanks for the comment sadhna
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