हरी ने कहा
करो विनती मेरी
वो भूल गया
सुबह हुई
धूप चढ़ आई है
तुम न उठे
कोयल बोले
कर्ण सुनते धुन
मन मोहक
कागा है काला
कोयल है चतुर
कोयल काली
सुर उसका
मीठा है मधुर है
कागा का नहीं
कोयल काली
अपने अंडे देती
कौए के घर
है वह चंट
चालाक बहुत है
उड़ जाती है
आशा
सुन्दर दोहा
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
हटाएंधन्यवाद आलोक जी टिप्पणी के लिए |
बढ़िया हाइकु ! अंतिम हाइकु की दूसरी पंक्ति को सुधार लें !
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
हटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |
सुन्दर हाइकु
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंधन्यवाद ओंकार जी टिप्पणी के लिए |