कभी अपना दिल टटोलाना 
क्या उससे कभी कोई 
गलती हुई ही नहीं 
 वह कभी
पशेमा
हुआ ही नहीं |
 अपने तक ही सीमित रहा 
किसी और का दुःख न बाँट सका 
प्यार है किस चिड़िया का नाम 
खुद उसे पहचान न सका |
सतही रिश्तों से खोखला हुआ 
उनकी गहराई तक न पहुँच पाया 
उसे किसी का अपनापन न भाया 
सतही रिश्तों को समझ दर किनारे किया |
कितने रिश्ते निभाए जा सकते है 
यह भी कभी सोचा नहीं 
या सभी को सतही समझा 
उन्हें खुद से दूर किया |
पर एक बात तो स्पष्ट हुई 
रिश्तों के बिना जीवन फीका लगता 
बेरंग जीवन होता जाता 
खालीपन आ जाता नन्हें से दिल में |
यह अभाव कैसे पट पाता
सोचा का विषय हुआ 
फिर से पलट कर देखोगे 
तब समझ पाओगे इनकी अहमियत |
रिश्ते हैं जीवन के 
अभिन्न अंग जान जाओगे 
इनके बिना जीवन अधूरा 
पहचान जाओगे |
आशा
सच है रिश्तों के बिना जीवन बिलकुल बेरंग और एकाकी हो जाता है ! जिसने रिश्तों की अहमियत नहीं समझी उसने जीवन की सबसे बड़ी दौलत को ठुकरा दिया ! बढ़िया रचना !
जवाब देंहटाएंThanks for the information of the post here
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |