मेरा मन चंचल पारद जैसा
कभी स्थिर नहीं रहता
सदा थिरकता रहता
रखता सदा व्यस्त खुद को |
कभी इधर उधर झांकता नहीं
चाहता कुछ ऐसा करना
जो किसी ने किया न हो
हो नया चमकता पारे सा |
हूँ प्रयत्नरत उसे चुनने में
खुद की छवि चमकाने में
खुद को पारद सा
उपयोगी बनाने में |
अनगिनत गुण दिखाई देते पारद में
वह पूजा जाता पारद प्रतिमा बना कर
सुन्दर सा शिवलिंग बना कर पुष्पों से
बहुत उपयोगी होता दवाइयों में|
पर बुराई भी कम नहीं उसमें
स्थिरता नहीं उसमें यहाँ वहां थिरकता
भूल से यदि खा लिया जाता
भव सागर से मुक्ति की राह दिखाता
यही बुराई दिखी मुझे इसमें |
खुद की कमियाँ
मुझे भी दिखाई देती है
पर दूरी उनसे बनी रहे
यही कामना करती हूँ |
मेरा मन स्थिर हो जाए अगर
मुझे सफलता मिल जाएगी
हर उस कार्य में
जिसकी तमन्ना है मुझे |
मन की एकाग्रता है आवश्यक
चंचलता नहीं पारद जैसी
गुण उसके हैं अद्भुद
उन जैसी चाह है मेरी |
मैं किसी की निगाहों में
गिरना नहीं चाहती
कर्तव्यों का ख्याल रख पाऊँ
ऐसा विचार रखती हूँ |
आशा
प्रत्येक व्यक्ति की कमी उजागर कर दी आपने आशा जी, यह कहकर कि...खुद की कमियाँ
जवाब देंहटाएंमुझे भी दिखाई देती है
पर दूरी उनसे बनी रहे
यही कामना करती हूँ |...वाह
धन्यवाद सर
जवाब देंहटाएंसुंदर कामना
जवाब देंहटाएंThanks for the coment
जवाब देंहटाएंसार्थक और सुंदर कामना
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंआभार रवीन्द्र जी मेरी रचनाको आज के अंक में स्थान देने की सूचना के लिए |
मैं किसी की निगाहों में
जवाब देंहटाएंगिरना नहीं चाहती
कर्तव्यों का ख्याल रख पाऊँ
ऐसा विचार रखती हूँ |
धन्यवाद कविता जी मेरी रचना पर टिप्पणी के लिए |
हटाएंमानवोचित अभिलाषा! बहुत सुन्दर!
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.
हटाएंधन्यवाद ह्रदयेश जी टिप्पणी के लिए |
हटाएंवाह ! बहुत ही सुन्दर सार्थक अभिलाषा ! सुन्दर रचना !
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के किये |