30 मार्च, 2022

हाल मेरे मन का


 

मेरा मन चंचल पारद जैसा

कभी स्थिर नहीं रहता

सदा थिरकता रहता

रखता सदा व्यस्त खुद को  |

कभी इधर उधर झांकता नहीं 

चाहता कुछ ऐसा करना

जो किसी ने किया न हो  

हो नया चमकता पारे सा |

हूँ  प्रयत्नरत उसे चुनने में  

 खुद की छवि चमकाने में

खुद को पारद सा 

उपयोगी बनाने में |

 अनगिनत गुण दिखाई देते पारद में 

वह पूजा जाता पारद प्रतिमा बना कर  

 सुन्दर सा शिवलिंग  बना कर पुष्पों से 

बहुत उपयोगी होता दवाइयों में|

पर बुराई भी कम नहीं उसमें 

  स्थिरता नहीं उसमें यहाँ वहां थिरकता  

भूल से यदि खा लिया जाता

भव सागर से मुक्ति की राह दिखाता

यही बुराई  दिखी मुझे इसमें |

खुद की कमियाँ

 मुझे भी दिखाई देती है

पर दूरी  उनसे बनी रहे

यही कामना करती हूँ |

मेरा मन स्थिर हो जाए अगर

मुझे सफलता मिल जाएगी

हर उस कार्य में

 जिसकी तमन्ना है मुझे |

मन की एकाग्रता है आवश्यक

चंचलता नहीं पारद जैसी

गुण उसके हैं अद्भुद 

उन जैसी चाह है मेरी |

मैं किसी की निगाहों में 

गिरना नहीं चाहती

कर्तव्यों का ख्याल रख पाऊँ

ऐसा विचार रखती हूँ |

आशा 

13 टिप्‍पणियां:

  1. प्रत्‍येक व्‍यक्‍ति की कमी उजागर कर दी आपने आशा जी, यह कहकर कि...खुद की कमियाँ

    मुझे भी दिखाई देती है

    पर दूरी उनसे बनी रहे

    यही कामना करती हूँ |...वाह

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  2. सुप्रभात
    आभार रवीन्द्र जी मेरी रचनाको आज के अंक में स्थान देने की सूचना के लिए |

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  3. मैं किसी की निगाहों में

    गिरना नहीं चाहती

    कर्तव्यों का ख्याल रख पाऊँ

    ऐसा विचार रखती हूँ |

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    1. धन्यवाद कविता जी मेरी रचना पर टिप्पणी के लिए |

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  4. मानवोचित अभिलाषा! बहुत सुन्दर!

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    1. इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.

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    2. धन्यवाद ह्रदयेश जी टिप्पणी के लिए |

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  5. वाह ! बहुत ही सुन्दर सार्थक अभिलाषा ! सुन्दर रचना !

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  6. सुप्रभात
    धन्यवाद साधना टिप्पणी के किये |

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