जीवन भार सा हुआ जाता
तुम्हें न पाकर यहाँ
किया क्या है मैंने
मुझे बताया तो होता |
कोई समाधान निकलता
मन ही मन जलने कुढ़ने से
क्या हल निकलेगा
कभी सोच कर देखो |
क्या तुमने सही निर्णय लिया
घर से बाहर कदम बढ़ा कर
एक गलत आदत को अपना कर
क्या मिसाल कायम की तुमने |
कायर हो कर घर छोड़ा
कर्तव्यों से मुंह मोड़ा
क्या यह उचित किया तुमने
अपने मन के अन्दर झांको |
फिर सोचो क्या यह
सही निर्णय था तुम्हारा
तुम निकले पलायन वादी
समस्याओं से भाग रहे |
हो तुम कायर न हुए जुझारू
समस्या वहीं की वहीं रही
उसे बिना हल किये
तुम भाग निकले रणछोड़ से |
आशा
सादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (17-7-22}
को बादलों कीआँख-मिचौली"(चर्चा अंक 4493)
पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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कामिनी सिन्हा
Thanks for the information of my post
हटाएंबेहतरीन रचना
जवाब देंहटाएंThanks for the comment
हटाएंबेहतरीन रचना
जवाब देंहटाएंधन्यवाद टिप्पणी के लिए
हटाएंसार्थक और सशक्त संदेश वाला सृजन! बहुत-बहुत बधाई आपको।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद टिप्पड़ी के लिए
हटाएंपलायनवादी सोच पर करारा प्रहार करती सुन्दर प्रस्तुति !
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