मधुर धुन पक्षियों की
जब भी कानों में पड़ती
मन में मिठास घुलती मधुर स्वरों की
मन नर्तन करता मयूर सा |
जैसे ही भोर होती
कलरव उनका सुनाई देता अम्बर में
आसमान में उड़ते पंख फैला
अपनी उपस्थिति दर्ज कराते |
स्वर लहरी इतनी मधुर होती
आकर्षित करती अपनी ओर
खुशनुमा माहौल होता प्रकृति का
मन करता कुछ देर और ठहरने को |
घर जाने का मन न होता
बगिया में रुक हरियाली का मजा उठाता
आनंद में खो जाना चाहता
भूल जाता कितने काम करने को पड़े हैं |
जब यह ख्याल आता जल्दी से कदम उठाता
अपने आशियाने की ओर चल देता
अपने से वादा लेता समय का महत्व बताता
कल जल्दी ही यहाँ पहुंचना है समझाता |
आशा
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (30-07-2022) को "काव्य का आधारभूत नियम छन्द" (चर्चा अंक--4506) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
Thanks for the information of my post
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंThanks for the comment
हटाएंवाह
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रकृति गीत। बहुत-बहुत शुभकामनाएँ।
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना है
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना है. साधुवाद!
जवाब देंहटाएंकृपया इस लिन्क पर जाकर मेरी रचना मेरी आवाज़ में सुने और चैनल को सब्सक्राइब करें, कमेंट बॉक्स में अपने विचार भी लिखें. सादर! -- ब्रजेन्द्र नाथ
https://youtu.be/PkgIw7YRzyw
मनभावन प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंप्रकृति का पावन स्वरुप दर्शाती सुन्दर रचना !
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