क्या मुझसे ही मनावारे करवाओगे
क्या कोई और न मिला तुम्हें मेरी जगह
मुझे सताने के सिवाय मुझे रुलाने के लिए
मैंने सोचा न था तुम्हारा व्यबहार
ऐसा भी हो सकता है |
पहले किसी के संपर्क में
आयी न थी तुम्हारे सिवाय
तुमसा स्वभाव किसी का भी न देखा
चेहरा दोरंगा देख न पाई
जब पहली बार मिली
मेरा मन उत्फुल हुआ |
अब सोचती हूँ
तुम्हारा चहरे का ऐसा भाव
किसी का न देखा
मन शुब्ध हुआ |
ऎसी भी क्या बात हुई
मुझसे दूरी बढ़ती गई
मन चाही रंगों की तस्वीर मेरी अधूरी रही
पर फिर सोचा मन को कुछ
संतुष्टि मिली यही क्या कम है
जो मिला उसी में संतुष्ट होना चाहिए |
कोई सम्पूर्ण नहीं होता
इस याद को भूलना न चाहिए
याद करो अपने आपमें भी
कुछ तो कमी रही होगी
पहले खुद को देखो फिर
किसी से शिकायत करो
अधिक अपेक्षा भी रखना उचित न
जो जैसा है उसी जैसा होन का
प्रयत्न होना चाहिए |
आशा सक्सेना
बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.
हटाएंधन्यवाद यशोदा जी मेरी रचना को अपने अंक में स्थान देने के लिए |
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर सृजन।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद अनीता जी टिप्पणी के लिए |
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर सार्थक सन्देश देती बेहतरीन रचना ! बहुत बढ़िया !
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