बिना बांसुरी ये सुर कैसे सुनाई देते
कान्हां तो नहीं आए
पर संदेश ले ऊधव आए
कान्हां जा बसे मथुरा नगर
में |
सुध बिसराई हम सब की
भूले से याद न आई
हम मन ही मन दुखी हुए
पलकें न झपकी पल भर को |
रो रो पागल हुए उसकी याद में
अपनी व्यथा किससे व्यक्त
करें
कोई समझ न पाया हम को
हमारा प्यार है कैसा कोई जान न पाया
कान्हां बिन रहा न जाए
माखन मिश्री किसे खिलाएं
हम कान्हां में खोए ऐसे
अपने को ही भूल गए |
कैसा घर द्वार कैसा काम काज
कहीं मन नहीं लगता
दौड़ा जाता कदम के नीचे कुंजों में
या यमुना तीर |
सुनी जहां मीठी धुन मुरली की
ऊधव का ज्ञान भी समझ न पाए
है यही समस्या मन की
कान्हां क्यूँ न आए |
आशा सक्सेना
गोपियों की मनोव्यथा का सुन्दर चित्रण !
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