मां ने दुलारा बहुत प्यार किया
पर गलत बात पर बरजा
मुझे अपनी गलती का एहसास कराया
हर बात कायदे की सिखाई |
कभी न हो अधीर रहो धैर्य से
यही शिक्षा दी माँ ने
जिसने किया अलग
मुझको सब से |
ज ब रोना गाना मचाया मैंने
गोद में ले कर समझाया मुझे
शांत मन रहने को कहा |
इतनी शिक्षा दी मुझे
तभी तो प्रथम गुरुं कहलाई
|है मेरी माँ सब से अलग
उस जैसा कोई नहीं है|
सदा उसकी छाया में रहूँ
दिल मेरा यही चाहता
प्रथम गुरुं को मेरा दिल से प्रणाम
यही मेरा मन कहता |
आशा सक्सेना
शानदार
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |
हटाएंमाँ से बढ़ कर कोई गुरू नहीं ! सुन्दर रचना !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद टिप्पणी के लिए
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