सारी दुनिया देख रही
आज के वातावरण को
किसी ने मन ना मारा
खुल कर जिए बिना
दवाव के |
उनको कभी घुटन ना
हुई वे जीते रहे
आज के माहोल मैं
जीवन हुआ बेरंग
यह करो यह ना करो में
उलझे रहे
कहीं के ना रहे
हुई स्थिती ऎसी धोबी के कुत्ते जैसी |
किसी ने समझाया भी
सुनो सबकी करो मन की
पर मन ने कहा यह तो
गलत होगा
क्या किसी का अपमान
नहीं होगा
इसमें कोई क्या करे
?
आखिर अपनी जिन्दगा
में
कभी तो खुल कर जीना
हो
अपने अनुसार चल पाएं
किसी के आश्रित नहीं
हों |
जाग्रति समाज में आई
जरूर पर दिखावा है
मंच पर भाषण अलग और
धर में अलग व्यवहार
यही यदि किसी ने
ध्यान दिया होता
किसी ने खुशी ना जताई
होती
व्यवहार कथनी और करनी में
अलग ना होता |
यही तो आज का जीवन
है
उसे ऐसा ही जीवन
जीना है
फिर मन में क्लेश
क्यूँ ?
बहुत खूबसूरत
जवाब देंहटाएंधन्यवाद ओंकार जी टिप्पणी के लिए
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