खोजा मन के अंदर बाहर
सिर्फ वही नहीं 
दो शब्द रंगे गए 
दूसरे शब्दों में वे  हिरा गए कहीं 
मेरे भाव भी गुम हैं 
किसी अंधेरी कोठरी में |
मेरी  खुशी कहीं गुम हो गई 
जब ठुकराई गई सारे समाज से  
किसी ने ना अपनाया  समाज में
दुःख बहुत हुआ 
खुद के नकारे जाने पर |
  यह हाल है आज 
शब्दों की दुनिया का 
सम्हाल नहीं पाए खुद को 
नाही अन्यों को|
जो सकारथ हुआ |
 है निराली शब्दों  की दुनिया 
जिसने भी चाहा उनको 
संपन्न किया भाषा को 
उसके लालित्य को | 
उनका उपयोग किया दिल से 
पलट कर ना देखा क्या लिखा 
उसका अर्थ क्या निकला 
किसने सही रूप दिया उसको |
आशा सक्सेना    
  
शब्दों की महिमा स्थापित करती सार्थक रचना !
जवाब देंहटाएं