फिर से शाम उतरी छत पर 
फैली विदा होती  सुनहरी धूप
पर ऊपर जाने का मन ना  हुआ
ना जाने क्यों मन में कोई
खुशी नहीं
 उदासी छाई है जीवन की उतरती श्याम में |
लगता है सभी कार्य पूर्ण
हुए हैं 
फिर धरती पर व्यर्थ बोझ
क्यूँ रहे 
किसी और को भी अवसर मिले मेरे
सिवाय
उससे भी अपने कर्ज पूरे
करवालूँ 
कहीं समय फिर  मिले ना मिले 
 सर पर बोझ रख कहाँ जाऊंगी
चार दिन की खुशी बार बार नहीं आती
ऐसा जीने के लिए कुछ समय
खुशियाँ के लिए भी निकालना पड़ता है 
यदि मिल जाए चार चाँद लग
जाते हैं सारे जीवन में |
आशा सक्सेना
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद ओंकार जी
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