तोड़ा  है दिल 
मस्तिष्क पर जोर
यह क्या है 
कभी सोचा है 
कौन तुम्हारा
हुआ 
जान न पाए 
हम एकेले 
किससे  कहें
व्यथा
सोचते रहे 
चंचल मन 
विचलित हुआ है 
स्थिर न रहा 
फितरत है 
स्थाईत्व नहीं
रहा 
 कहाँ जाता है 
कैसी जिन्दगी
 चारो और अन्धेरा 
फैला हुआ |
आशा सक्सेना
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" रविवार 22 अक्टूबर 2023 को लिंक की जाएगी .... https://halchalwith5links.blogspot.com पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
जवाब देंहटाएंसूचना के लिए बहुत बहुत धन्यवाद यशोदा जी |
जवाब देंहटाएंसुन्दर हाइकु !
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